ROZA KHOLNE KI DUA || रोज़ा खोलने की दुआ ||

ROZA KHOLNE KI DUA | “अस्सलामु अलैकुम” भाइयों और बहनो आज मै आपके लिए रोज़ा खोलने की दुआ हिंदी में इंग्लिश में और उर्दू में लिख रहा हूँ तर्जमा के साथ “इंशा अल्लाह” आपको इसमें तर्जमा के साथ दुआ पढ़ने को मिलेगा और आपको रोज़े के मसाइल भी पढ़ने को मिलेगा |

रोज़ा खोलने की दुआ हिंदी में

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुम्तु व बिका आमंतु व अलैका तवक्कल्तु व अला रिज़्क़िका अफ्तरतु

ROZA KHOLNE KI DUA IN ENGLISH

“Bismillah Hir-Rahman Nir-Rahim”

Allahumma, inni laka sumtu, wa bika aamantu, wa ‘alaika tawakkaltu, wa ‘ala rizq-ika-aftartu.

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيم

اَللّٰهُمَّ اِنِّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ

तर्जमा:अय अल्लाह मैं ने तेरे ही लिए रोजा रखा और तेरे ही दिए रिज़्क पर रोजा खोला।

आप यहाँ रोज़े के मसाइल पढ़ सक

तर्जमा :- “ ऐ ईमान वालो तुम पर रोज़ा फर्ज़ किया गया जैसा उन पर फर्ज़ हुआ था जो तुम से पहले हुए ताकि तुम गुनाहों से बचो चन्द दिनों का फिर तुम में जो कोई बीमार हो या सफर में हो वह और दिनों में गिनती पूरी करे और जो ताकत नहीं रखते वह फिदया दें एक मिस्कीन का खाना फिर जो ज़्यादा भलाई करे तो यह उसके लिए बेहतर है और रोज़ा रखना तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानते हो। माहे रमज़ान जिस में “कुरआन”उतारा गया लोगों की हिदायत को और हिदायत हक व बातिल में जुदाई बयान करने के लिए तो तुम में जो कोई यह महीना पाये उसका रोज़ा रखे और जो बीमार या सफर में हो वह दूसरे दिनों में गिनती पूरी करे, अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी का इरादा करता है सख़्ती का इरादा नहीं फ़रमाता और तुम्हें चाहिए कि गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो कि उसने तुम्हें हिदायत की और इस उम्मीद पर कि उसके शुक्रगुज़ार हो जाओ और ऐ महबूब ! जब मेरे बन्दे तुम से मेरे बारे में सवाल करें तो मैं नज़दीक हूँ दुआ करने वाले की दुआ सुनता हूँ जब यह मुझे पुकारें तो उन्हें चाहिए कि मेरी बात कबूल करें और मुझ पर ईमान लायें इस उम्मीद पर कि राह पायें। तुम्हारे लिए रोज़े की रात में औरतों से जिमा (हमबिस्तरी) हलाल किया गया वह तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम उनके लिए लिबास। अल्लाह को मलूम है कि तुम अपनी जानों पर खियानत करते हो तो तुम्हारी तौबा कबूल की और तुम से मुआफ फरमाया तो अब उनसे जिमा करो और उसे, चाहो जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिखा और खाओ और पियो उस वक़्त तक कि फज़्र का सफेद डोरा सियाह डोरे से मुमताज़ हो जाये फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और उनसे जिमा न करो उस हाल में कि तुम मस्जिद में मोअतकिफ हो यह अल्लाह की हदें हैं इनके क़रीब न जाओ अल्लाह अपनी निशानियाँ यूँही बयान फ़रमाता है कि कहीं वह बचें”।

रोज़ा बहुत उमदा इबादत है उसकी फज़ीलत में बहुत हदीसें आयीं उनमें से बाज़ ज़िक की जाती है।

हदीस न.1:- सही बुखारी व सही मुस्लिम में अबू हुंरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं जब रमज़ान आता है आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं एक रिवायत में है ‘जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं एक रिवायत में है कि रहमत के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं और जहन्नम के दरवाज़े बन्द कर दिये जाते हैं और शैतान ज़न्जीरों में जकड़ दिये जाते हैं और इमाम अहमद और तिर्मिज़ी व इन्ने माजा की रिवायत में है कि जब माहे रमजान की पहली रात होती है तो शैतान और सरकश जिन्न कैद कर लिये जाते हैं और जहन्नम के दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं तो इनमें से कोई दरवाज़ा खोला नहीं जाता और जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं तो इनमें से कोई दरवाज़ा बन्द नहीं किया जाता और मुनादी पुकारता है,ऐ खैर तलब करने वाले ! मुतवज्जे हो, और ऐ शर के चाहने वाले ! बाज़ रह और कुछ लोग जहन्नम से आज़ाद होते हैं और यह हर रात में होता है इमाम अहमद व नसई की रिवायत उन्हीं से है कि हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया रमज़ान आया यह बरकत का महीना है अल्लाह तआला ने इसके रोज़े तुम पर फर्ज़ किये इस में आसमान के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं और दोज़ख के दरवाज़े बन्द कर दिये जाते हैं और सरकश शैतानों के तौक डाल दिये जाते हैं और इसमें एक रात ऐसी है जो हज़ार महीनों से बहतर है जो उसकी भलाई से महरूम रहा बेशक महरूम है।

हदीस न.2 :- इब्ने माजा हज़रते अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कहते हैं रमज़ान आया तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया यह महीना आया इसमें एक रात हज़ार महीनों से बेहतर है जो इससे महरूम रहा हर चीज़ से महरूम रहा और उसकी खैर से वही महरूम होगा जो पूरा महरूम है।

हदीस न.3 :- बैहकी शोअबुल ईमान में इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कहते हैं जब रमज़ान का महीना आता रसूलुल्लाह सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम कैदियों को रिहा फ़रमा देते और साइल को अता फरमाते।

हदीस न.4 :- बैहकी शोअबुल ईमान में इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि नबी सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जन्नत इब्तिदाए साल यानी शुरू साल से साले आइन्दा (आने वाले साल) तक रमज़ान के लिए आरास्ता की जाती है (सजाई जाती है) जब रमज़ान का पहला दिन आता है तो जन्नत के पत्तों से अर्श के नीचे एक हवा हूरों पर चलती है वह कहती हैं, ऐ रब ! तू अपने बन्दों से हमारे लिए उनको शौहर बना जिन से हमारी आँखें ठण्डी हों और उनकी आँखें हम से ठण्डी हों।

हदीस न.5:- इमाम अहमद अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं रमज़ान की आख़िर शब में उम्मत की मग़फित होती है। अर्ज की गयी क्या वह शबे कद्र है। फ़रमाया नहीं लेकिन काम करने वाले को उस वक़्त मज़दूरी पूरी दी जाती है जब वह काम पूरा कर ले।

हदीस न.6 :- बैहकी शोबुल ईमान में सलमान फारसी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कहते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने शाबान के आख़िर दिन में वअज़ फ़रमाया, फ़रमाया ऐ लोगो! तुम्हारे पास अज़मत वाला, बरकत वाला, महीना आया वह महीना जिसमें एक रात हज़ार महीनों से बेहतर है उसके रोज़े अल्लाह तआला ने फर्ज़ किये और उसकी रात में कयाम(नमाज़) व ततव्वो जो इसमें नेकी का कोई काम करे तो ऐसा है जैसे और किसी महीने में फर्ज़ अदा किया और इसमें जिसने फर्ज़ अदा किया तो ऐसा है जैसे और दिनों में सत्तर फर्ज़ अदा किए। यह महीना सब्र का है और सब्र का सवाब जन्नत है और यह महीना मुवासात (हमदर्दी) का है और इस महीने में मोमिन का रिज़्क बढ़ाया जाता है जो इसमें रोज़ादार को इफ़्तार कराये उसके गुनाहों के लिए मग़फिरत है और उसकी गर्दन आग से आज़ाद कर दी जायेगी और इस इफ़्तार कराने वाले को वैसा ही सुवाब मिलेगा जैसा रोज़ा रखने वालों को मिलेगा बगैर इसके कि उसके अज्र में से कुछ कम हो। हमने अर्ज़ की या रसूलल्लाह ! हम में का हर शख़्स वह चीज़ नहीं पाता जिससे रोज़ा इफ़्तार कराये। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह तआला यह सवाब उस शख्स को देगा जो एक घूँट दूध या एक खुरमा (छुआरा) या एक घूँट पानी से इफ़्तार कराये और जिसने रोज़ादार को भरपेट खाना खिलाया उसको अल्लाह तआला मेरे हौज़ से पिलायेगा कि कभी प्यासा न होगा यहाँ तक कि जन्नत में दाखिल हो जाये। यह वह महीना है कि इसका अव्वल (शुरू के दस दिन) रहमत है और इसका औसत (दरमियान के दस दिन) मग़फिरत है और इसका आखिर जहन्नम से आज़ादी है। जो अपने गुलाम पर इस महीने में तखफीफ करे याअनी वैसा काम में कमी करे अल्लाह तआला उसे बख़्श देगा और उसे जहन्नम से आज़ाद फरमायेगा।

हदीस न.7 :- सहीहैन व सुनने तिर्मिज़ी व नसई व सही इब्ने खुजैमा में सहल इब्ने सऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जन्नत में आठ दरवाज़े हैं उनमें एक दरवाज़े का नाम रैहान है उस दरवाज़े से वही जायेंगे जो रोजे रखते हैं।

हदीस न.8 :- बुखारी व मुस्लिम में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी हुजूरे अदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए रोज़ा रखेगा उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे और जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए शबे कद्र का कियाम करेगा उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे।

हदीस न.9:- इमाम अहमद व हाकिम और तबरांनी कबीर में और इब्ने अबिदुनिया और बैहकी शोबुल ईमान में अब्दुल्लाह इब्ने अम्र रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं रोज़ा व कुरान बन्दे के लिए शफाअत करेंगे। रोज़ा कहेगा ऐ रब! मैंने खाने और ख़्वाहिशों से इसे दिन में रोक दिया मेरी शफाअत इसके हक में कबूल फ़रमा। कुरान कहेंगा ऐ रब! मैंने इसे रात में सोने से बअज़ रखा मेरी शफाअत इसके बारे में कबूल कर। दोनों की शफाअतें कबूल होंगी।

हदीस न.10 :- सहीहैन में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं आदमी के हर नेक काम का बदला दस से सात सौ तक दिया जाता है, अल्लाह तआला ने फरमाया मगर रोज़ा कि वह मेरे लिए है और उसकी जज़ा मैं दूँगा बन्दा अपनी ख़्वाहिशं और खाने को मेरी वजह से तर्क करता है रोज़ादार के लिए दो खुशियाँ हैं एक इफ़्तार के वक़्त और अपने रब से मिलने के वक़्त और रोज़ादारं के मुँह की बू अल्लाह तआला के नज़दीक मुश्क से ज़्यादा पाकीज़ा है और रोज़ा सिपर (ढाल) है और जब किसी के रोज़े का दिन हो तो न बेहूदा बके और न चीखे फिर अगर उससे कोई गाली-गलौच करे या लड़ने पर अमादा हो तो कह दे मैं रोज़ादार हूँ, इसी के मिस्ल इमाम मालिक व अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व नसई व इन्ने खुजैमा ने रिवायत की।

न.11:- तबरानी औसत में और बैहकी इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह तआला के नज़दीक अमाल सात किस्म के हैं दो अमल वाजिब करने वाले और दो का बदला उनके बराबर है और एक अमल का बदला दस गुना और एक अमल का मुआवज़ा सात सौ है एक वह अमल है जिसका सवाब अल्लाह ही जाने। वह दो जो वाजिब करने वाले हैं उनमें एक यह कि जो खुदा से इस हाल में मिले कि खालिस उसी की इबादत करता था किसी को उसके साथ शरीक न करता था उसके लिए जन्नत वाजिब। दूसरा यह कि जो खुदा से मिला इस हाल में कि उसने शरीक किया है तो उसके लिये जहन्नम वाजिब और तीसरा यह कि जिसने बुराई की उसको उसी कद्र सज़ा दी जायेगी और चौथा यह कि जिस ने नेकी का इरादा किया, मगर अमल न किया तो उस को एक नेकी का बदला दिया जायेगा और पाँचवाँ यह कि जिसने नेकी की उसे दस गुना सवाब मिलेगा और छटा यह कि जिसने अल्लाह की राह में ख़र्च किया उसको सात सौ का सवाब मिलेगा एक दिरहम का सात सौ दिरहम एक दीनार का सवाब सात सौ दीनार और सातवाँ रोज़ा अल्लाह तआला के लिए है उसका सवाब ‘अल्लाह तआला के सिवा कोई नहीं जानता।

हदीस न.12 से 15:- इमाम अहमद और बैहकी रिवायत करते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया रोज़ा सिपर (ढाल) है और दोज़ख से हिफाज़त का मज़बूत किला इसी के करीब-करीब जाबिर व उस्मान इब्ने अबिलआस व मआज़ इब्ने जबल रदियल्लाहु तआला अन्हुम से मरवी।

रुदीस न.16 से 17 :- अबू यअला व बैहकी सलमा इब्ने कैस और अहमद बज़्ज़ार अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिसने अल्लाह तआला की’ रज़ा के लिए एक दिन का रोज़ा रखा अल्लाह तआला उसको जहन्नम से इतना दूर कर देगा जैसे कि कौआ कि जब बच्चा था उस वक़्त से उड़ता रहा यहाँ तक कि बूढ़ा होकर मरा।

हदीस न.18 :- अबू यअला व तबरानी अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर किसी ने एक दिन नफ़्ल रोज़ा रखा और ज़मीन भर उसे सोना दिया जाये जब भी उसका सवाब पूरा न होगा उसका तो सवाब कियामत के दिन मिलेगा।

हदीस न.19:- इब्ने माजा अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हर शय के लिये ज़कात है और बदन की ज़कात रोज़ा है और रोज़ा निस्फ (आधा) सब्र है।

हदीस न.20 :- नसई व इब्ने खुजैमा व हाकिम अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी अर्ज की या रसूलल्लाह!, मुझे किसी अमल का हुक्म फरमायें। इरशाद फ़रमाया रोज़े को लाज़िम कर लो कि इसके बराबर कोई अमल नहीं। उन्होंने फिर वही अर्ज़ की वही जवाब इरशाद हुआ।

हदीस न. 21 से 26 बूखारी व मुस्लिम व तिर्मिज़ी व नसई अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो बन्दा अल्लाह की राह में एक रोज़ा रखे अल्लाह तआला उसके मुँह को दोज़ख से सत्तर बरस की राह दूर फरमा देगा और इसी के मिस्ल नसई, तिर्मिज़ी व. इब्ने माजा अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी और तबरानी अबू दरदा और तिर्मिज़ी अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत करते हैं फरमाया कि उसके और जहन्नम के दरमियान अल्लाह तआला इतनी बड़ी खन्दक कर देगा जितना आसमान व ज़मीन के दरमियान, फासिला है और तबरानी की रिवायत अम्र इन्ने अब्सा रदियल्लाहु तआला अन्हु से है कि दोजख उससे सौ बरस की राह दूर होगी और अबू यअला की रिवायत मआज़ इब्ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से है कि रमज़ान के दिनों के अलावा अल्लाह तआला की राह में रोज़ा रखा तो तेज़ घोड़े की रफ़्तार से सौ बरस की मसाफत (दूरी) पर जहन्नम से दूर होगा।

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