Dua e qunoot || दुआ ए क़ुनूत ||

Dua e qunootअस्सलामु अलैकुम दोस्तों आज हम आपके लिए दुआ ए क़ुनूत लिख रहे है और इसके बाद आपके इल्म में इज़ाफ़े के लिए कुछ दीनी मसाइल भी लिखेंगे आप हमारी पोस्ट पूरा पढियेगा आपके इल्म में इंशा अल्लाह बहुत इज़ाफ़ा होगा |

Dua e qunoot in hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

“अल्ला हुम्मा इन्ना नस्ता ईनु क व नास्तगफिरुका व नु’अ मिनु बिका व नतावक्कलु अलाइका वा नुस्नी अलैकल खैर
व नशकुरुक वला नकफुरुका व नख्लऊ व नतरुकु मैंय्यफ-जुरूक अल्ला हुम्मा इय्याका नअबुदु व लका नुसल्ली व नस्जुदु व इलैका नस्आ व नहफिजु व नरजू रहमतका व नख्शा अज़ाबका इन्ना अज़ाबका बिल कुफ़्फ़ारि मुलहिक़. “

Dua e qunoot in english

Bismillahir Rahmanir Rahim

Allah humma inna nasta- eenoka wa nastaghfiruka wa nu’minu bika wa natawakkalu alaika wa nusni alaikal khair, wa nashkuruka wala nakfuruka wa nakhla-oo wa natruku mai yafjuruka, Allah humma iyyaka na’budu wa laka nusalli wa nasjud; wa ilaika nas aaa wa nahfizu wa narju rahma taka wa nakhshaa azaabaka; inna azaabaka bil kuffari mulhik.

Dua e qunoot in arbic

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

اللَّهُمَّ إِنَّا نَسْتَعِينُكَ وَنَسْتَغْفِرُكَ وَنُؤْمِنُ بِكَ وَنَتَوَكَّلْ عَلَيْكَ وَنُثْنِي عَلَيْكَ الْخَيْرَ وَ نَشْكُرُكَ وَلَا نَكْفُرُكَ وَنَخْلَعُ وَنَتُرُكُ مَنْ يَفْجُرُكَ اللَّهُمَّ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَلَكَ نُصَلِّي وَنَسْجُدُ وَإِلَيْكَ نَسْعُ وَنَحْفِدُ وَنَرْجُوا رَحْمَتَكَ وَنَخْشَى عَذَابَكَ إِنَّ عَذَابَكَ بِالْكُفَّارِ مُلْحِقٌ

Dua e qunoot ke baad aap iman or kufr ka bayan padh sakte hai

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों अपने इल्म में इज़ाफ़े के लिए ईमान और कुफ्र का बयान पढ़ सकते हैं|

ईमान इसे कहते हैं कि सच्चे दिल से उन तमाम बातों की तस्दीक करे जो दीन की ज़रूरियात में से हैं और किसी एक ज़रूरी दीनी चीज़ के इन्कार को कुफ्र कहते हैं अगरचे बाकी तमाम जरूरियात को हक और सच मानता हो मतलब यह कि अगर कोई सारी ज़रूरी दीनी बातों को मानता हो लेकिन किसी एक का इन्कार कर बैठे तो अगर जिहालत और नादानी की वजह से है तो कुफ्र है और जान बूझ कर इन्कार करे तो काफिर है। दीन की ज़रूरियात में वह बातें हैं जिनको हर ख़ास और आम लोग जानते हों जैसेः- अल्लाह तआला की वहदानियत यानी अल्लाह तआला को एक मानना, नबियों की नुबुव्वत, जन्नत, दोजख हश्र, वगैरा। मिसाल के तौर पर एअस्तिकाद रखता हो कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ‘खातमुन्नबीय्यीन’ हैं (यानी हुजूर के बाद अब कोई नया नबी कभी नहीं आएगा)

Dua e qunoot aap upar me padh sakte hai

अवाम से मुराद वह लोग हैं जिनकी गिनती आलिमों में तो न हो मगर आलिमों के साथ उनका उठना बैठना रहता हो और वह दीनी और इल्मी बातों का शौक रखते हों। ऐसा नहीं कि वह जंगल बियाबानों और पहाड़ों के रहने वाले हों जो कलिमा भी ठीक से नहीं पड़ सकते हों ऐसे लोग अगर दीन की ज़रूरी बातों को न जानें तो उनके न जानने से दीन की ज़रूरी बातें गैर ज़रूरी नहीं हो जायेंगी। अलबत्ता उनके मुसलमान होने के लिए यह बात ज़रूरी है कि वह दीन और मज़हब की ज़रूरी चीजों का इन्कार न करें और यह एअतिकाद रखते हों कि इस्लाम में जो कुछ है हक है और उन सब पर उनका ईमान हो।

अकीदा :- अस्ले ईमान सिर्फ तस्दीक का नाम है यानी जो कुछ अल्लाह व रसूल रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया है उसको दिल से हक मानना। आमाल (यानी नमाज़, रोज़ा वगैरा) जुज़्वे ईमान यानी ईमान का हिस्सा नहीं। अब रही बात इक़रार की तो अगर तस्दीक के बाद उसको अपना ईमान ज़ाहिर करने का मौका नही मिला तो यह अल्लाह के नज़दीक मोमिन है और अगर उसे मौका मिला और उसे इकरार करने को न कहा गया तो अहकामे दुनिया में काफिर समझा जायेगा न उस के जनाज़े की नमाज़ पड़ी जायेगी। और न वह मुसलमानों के कब्रिस्तान में दफन किया जायेगा। लेकिन अगर उस से इस्लाम के ख़िालफ कोई बात न ज़ाहिर हो तो वह अल्लाह के नज़दीक मोमिन है।

अकीदा :- मुसलमान होने के लिए यह भी ज़रूरी शर्त है कि जुबान से किसी ऐसी चीज़ का इन्कार न करे जो दीन की जरूरियात से है अगरचे बाकी बातों का इकार करता हो। और अगर कोई यह कहे कि सिर्फ जुबान से इन्कार है और दिल में इन्कार नहीं तो वह भी मुसलमान नही क्यूँकि बिना किसी खास शरई मजबूरी के कोई मुसलमान कुफ्र का कलिमा निकाल ही नहीं सकता इसलिए कि ऐसी बात वही मुँह पर ला सकता है जिस के दिल में इस्लाम और दीन की इतनी ही जगह हो कि जब चाहा इन्कार कर दिया और इस्लाम ऐसी तस्दीक का नाम है जिस के खिलाफ हरगिज़ कोई गुन्जाइश नहीं।

मसला :- अगर कोई आदमी मजबूर किया गया कि वह (मआज़ल्लाह) कोई कुफ्रिया बात कहे यानी वह मुसलमान अगर कुफ्रिया बात न कहेगा तो ज़ालिम उसे मार डालेगा या उसके बदन का कोई हिस्सा काट देगा तो उस मुसलमान के लिए इजाज़त है कि मजबूरी में वह जुबान से कुफ्रिया बात बक दे मगर शर्त यह है कि दिल में उसके वही ईमान बाकी रहे जो पहले था लेकिन ज़्यादा अच्छा यही है कि जान चली जाये मगर जुबान से भी कुफ्रिया बात न बके ।

मसला :- अमले जवारेह (यानी हाथ पैर वगैरा से किए जाने वाले अमल या काम) ईमान के अन्दर दाखिल नहीं है। अलबत्ता कुछ ऐसे काम हैं जो बिल्कुल ईमान के खिलाफ हैं उन कामों के करने वालों को काफिर कहा जायेगा। जैसे बुत, चाँद या सूरज को सजदा करने किसी नबी के कत्ल या नबी की तौहीन करने वाले या कुन शरीफ या काबे की तौहीन करने वाले और किसी सुन्नत को हल्का बताने वाले यकीनी तौर पर काफिर हैं। ऐसे ही जुन्नार (जनेऊ) बाँधने वाले, सर पर चोटी रखने वाले और कशका (मज़हबी टीका) लगाने वाले को भी फुकहाए किराम ने काफिर कहा है। ऐसे लोगों के लिए हुक्म है कि वह तौबा कर के दोबारा इस्लाम लायें और फिर अपनी बीवी से दोबारा निकाह करें।

अकीदा :- दीन की ज़रूरियात में से जिस चीज़ का हलाल होना नस्से कतई (यानी क़ुरान और अहादीस) से साबित हो उसको हराम कहना और जिसका हराम होना. यकीनी हो उसे हलाल बताना कुफ्र है जबकि यह हुक्म दीन की जरूरियात से हो और अगर मुन्किर उस दीन की ज़रूरी बात से आगाह है तो काफिर है।

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