Taraweeh ki Dua in Hindi ||तरावीह की दुआ हिंदी में

Taraweeh ki dua अस्सलामु अलैकुम दोस्तों आज हम आपके लिए तरावीह की दुआ लिख रहे है और तरावीह के मसाइल भी साथ में लिख रहा हूँ आप हमारे पोस्ट को पढ़ कर इल्म हासिल कर सकते है |

Taraweeh ki Dua in Hindi ||तरावीह की दुआ हिंदी में

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

सुब्हा-नल मलिकुल कुद्दूस सुब्हान जिल मुल्कि वल म-ल कूत सुब्हा- न ज़िल इज्जती वल अ-ज़-मति वल-हैबति वल कुदरति वल-किब्रियाइ वल-ज-ब-रुत सुब्हा-नल-मलिकिल हैय्यिल्लज़ी ला यनामु व ला यमूत सुब्बुहुन कुद्दूसुन रब्बुना न रब्बुल मलाइकति वरूह अल्लाहुम्मा अजिरना मिनन्नारि या मुजीरु या मुजीरु या मुजीरू बीरहमतीका या अर्रहमरराहिमीन “

Taraweeh ki Dua in English

Bismillahir Rahmanir Raheem

Subhana Dhil-Mulki wal-Malakoot. Subhana Dhil-Izzati wal-Azhamati wal-Haybati wal-Qudrati wal-Kibriyai wal-Jabaroot. Subhanal-Malikil-Hayyil-Ladhi Laa Yanaamu wa Laa Yamoot. Subboohun Quddoosun Rabbuna wa Rabbul-Malaikati war-Rooh. Allahumma ajirna minan-naar, Ya Mujeer, Ya Mujeer, Ya Mujeer.

Taraweeh ki dua arbic me

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيم

سُبْحَانَ ذِی الْمُلْکِ وَالْمَلَکُوْتِ سُبْحَانَ ذِی الْعِزَّةِ وَالْعَظَمَةِ وَالْهَيْبَةِ وَالْقُدْرَةِ وَالْکِبْرِيَآئِ وَالْجَبَرُوْتِ ط سُبْحَانَ الْمَلِکِ الْحَيِ الَّذِی لَا يَنَامُ وَلَا يَمُوْتُ سُبُّوحٌ قُدُّوْسٌ رَبُّنَا وَرَبُّ الْمَلَائِکَةِ وَالرُّوْحِ ط اَللّٰهُمَّ اَجِرْنَا مِنَ النَّارِ يَا مُجِيْرُ يَا مُجِيْرُ يَا مُجِيْر۔

Taraweeh ki dua ke baad hum apke liye aalame barzakh ke baare me likh rahe hai

अपने इल्म में इज़ाफ़े के लिए आप आलमे बरज़ख़ के बारे में पढ़ सकते हैं |

आलमे बरज़ख का बयान

दुनिया और आखिरत के बीच एक और आलम है जिसको बरज़ख कहते हैं। मरने के बाद और से पहले तमाम इन्सानों और जिनों को अपने अपने मरतबे के लिहाज़ से बरज़ख में रहना होता है। और यह आलम इस दुनिया से बहुत बड़ा है। दुनिया बरज़ख के मुकाबले में ऐसी है जैसे माँ के पेट में बच्चा। बरज़ख में कोई आराम से है और कोई तकलीफ से।

अकीदा :- हर एक के लिए मौत का दिन और वक़्त मुकर्रर है। जिस की जितनी ज़िन्दगी है उसमें कमी बेशी नहीं हो सकती जब ज़िन्दगी के दिन पूरे हो जाते हैं उस वक़्त हज़रते इजराईल अलैहिस्सलाम रूह कब्ज़ करने के लिए आते हैं। उस वक़्त उस आदमी को उसके दाएं बाएं हर तरफ और जहाँ तक निगाह काम करती है। फिरिश्ते दिखाई देते हैं। मुसलमान के आस पास रहमत के फिरिश्ते होते हैं और काफ़िर के दाहिने बाएं अज़ाब के फिरिश्ते होते हैं। उस वक़्त हर एक पर इस्लाम की हक्कानियत सूरज से ज़्यादा रौशन हो जाती है। उस वक़्त अगर कोई काफिर ईमान लाना चाहे तो उसका ईमान नहीं माना जायेगा। क्यों कि वह इसलाम की हक्कानियत देख कर ईमान लाना चाहता है और हुक्म ईमान बिल गैब का है यानी बे देखे ईमान लाने का और अब गैब यानी बिना देखे न रहा लिहाज़ा ईमान कबूल नहीं।

अकीदा :- मरने के बाद भी रूह का रिश्ता इन्सान के बदन के साथ बाकी रहता है। रूह अगरचे बदन से अलग हो गई मगर बदन पर जो बीतेगी रूह को पता होगा और रूह पर उसका असर ज़रूर पड़ेगा जैसा कि दुनिया में जब बदन का असर रूह पर होता है उसी तरह या उससे भी ज़्यादा मरने के बाद होता है।

इन्सान जब अपनी दुनिया की ज़िन्दगी ठंडा पानी, हवा, नर्म बिस्तर या आराम देने वाली सवारियाँ अपने इस्तेमाल में लाता है तो इन चीज़ों का असर जिस्म पर पड़ता है मगर आराम और राहत रूह को मिलती है। ऐसे ही जब इन्सान गर्म पानी, गर्म हवा, सख़्त बिस्तर और तकलीफ देने वाली सवारियों को इस्तेमाल में लाता है तो उनकी गर्मी और सख्ती का असर इन्सान के जिस्म पर पड़ता है लेकिन तकलीफ रूह को होती है लेकिन जो चीज़ इन्सान के जिस्म पर असर कर के रूह के आराम और तकलीफ कां सबब बनती है रूह की तकलीफ और आराम इन्हीं असबाब पर मौकूफ नहीं बल्कि कुछ ऐसे सबब भी हैं जिनका इन्सान के जिस्म से कोई तअल्लुक नहीं। जैसे कि कभी इन्सानी रूह को खुशी होती है और कभी गम। और ज़ाहिर है कि इन चीज़ों का तअल्लुक इन्सानी जिस्म से कुछ भी नहीं बल्कि रूह के लिए आराम और तकलीफ के यह असबाब अलग से हैं।

अकीदा :- मरने के बाद मुसलमान की रूहें अपने अपने दर्जों के मुताबिक अलग अलग जगहों में रहती हैं। कुछ की कब्र पर कुछ की चाहे ज़मज़म शरीफ में कुछ की आसमान और ज़मीन के बीच कुछ की पहले आसमान से सातवें आसमान तक कुछ की आसमानों से भी आला इल्लीन में रहती हैं। मगर यह रूहें जहाँ कहीं भी रहें उनका अपने जिस्म से रिश्ता उसी तरह बराबर काइम रहता है। जो लोग उनकी कब्रों पर जाते हैं उनको वह पहचान लेते हैं और उनकी बातें सुनते हैं। और रूह के देखने के लिए यही ज़रूरी नहीं कि रूहें अपनी कब्रों से ही देखे बल्कि हदीस शरीफ में रूह की मिसाल इस तरह है कि एक चिड़िया पहले पिंजरे में बन्द थी और अब उसे छोड़ दिया गया और इमामों ने यह लिखा है कि।

तर्जमा :- “बेशक पाक जानें जब बदन की गिरफ्त से अलग होती हैं तो ‘आलमे बाला’ से मिल जाती हैं। और सब कुछ ऐसा देखती सुनती हैं जैसे यहीं मौजूद हैं।”

तर्जमा :-” जब मुसलमान मरता है तो उसका रास्ता खोल दिया जाता है कि जहाँ चाहे जाये।”

हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ साहिब मुहद्दिस देहलवी लिखते हैं कि “रूह रा कुर्ब व बोअदे मकानी यकसाँ अस्त” तर्जमा रूह के लिए जगह का करीब और दूर होना बराबर है।

मतलब यह है कि मोमिन की रूहें बिल्कुल आज़ाद हैं कि जब चाहें और जहाँ चाहें पहुँच जाएं। उन्हें कैद में नहीं रखा गया है। काफिरों की ख़बीस रूहों का यह हाल है कि कुछ की उनके मरघट या कब्र पर रहती हैं कुछ को “चाहे बरहूत “में (यमन में एक नाला है जिसका नाम चाहे बरहूत है) कुछ की रूहें पहली, दूसरी सातवीं ज़मीन तक और कुछ की रूहें उनके भी नीचे ‘सिज्जीन में रहती हैं और वह भी जहाँ कहीं हों जो उनकी कन्न या मरघट पर जाए उसे देखते पहचानते और बात सुनते हैं। उन्हें आने जाने का इखतियार नहीं क्यूँकि वह कैद में हैं।

Taraweeh ki dua aapke liye upar likha hai humne

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